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|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
}}
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<poem>
पैरों की मेहँदी मैंने
किस मुश्किल से छुड़ाई थी
और फिर बैरन ख़ुश्बू की
कैसी-कैसी विनती की थी
प्यारी धीरे-धीरे बोल
भरा घर जाग उठेगा
</poem>
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|रचनाकार=परवीन शाकिर
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पैरों की मेहँदी मैंने
किस मुश्किल से छुड़ाई थी
और फिर बैरन ख़ुश्बू की
कैसी-कैसी विनती की थी
प्यारी धीरे-धीरे बोल
भरा घर जाग उठेगा
</poem>