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Kavita Kosh से
कलरव घर में नहीं रहा सन्नाटा पसरा है
सुबह-सुबह ही सूरज का मुंह मुँह उतरा-उतरा है।
पानी ठहरा जहांजहाँ, वहां वहाँ पर
पत्थर बहता है
साखी देते हो
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