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03:57, 13 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
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फबी छबि थोरे ही सिंगार।
बिना कंचुकी बिन कर कंकन सोभा बढ़ी अपार॥
खसि रही तन तें तनसुख सारी खुलि रहे सौंधे बार।
’हरीचंद’ मनमोहन प्यारो रीझ्यौ है रिझवार॥
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