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वो लड़की / श्रद्धा जैन

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बस की खिड़की से सिर टिकाए वो लड़की,
सूनी आँखों से जाने क्या, पढ़ा करती है,
आँसूओं को छुपाए हुए वो अक़्सर,
ख़मोश सी ख़ुद से ही लड़ा करती है

हर बात से बेज़ार हो गई शायद
हँसी उसकी कही खो गई शायद
गिला किस बात का करे, और करे किससे,
हर आहट पर उम्मीद मिटा करती है
ख़मोश सी ख़ुद से ही लड़ा करती है

नकामयाब हर कोशिश उससे गुफ़्तगू की
अफवाह बनी अब तो पगली की, आरज़ू की
कोई कहे घमंडी, पागल बुलाए कोई
हर बात सुनकर, वो बस हंसा करती है
ख़मोश सी ख़ुद से ही लड़ा करती है

मैं देख कर हूँ हैरान उसकी वफ़ाओं को
कब कौन सुन सकेगा, ख़मोश सदाओं को
लब उसके कब खुलेंगे कोई गिला लिए
कब किसी और को कटघरे में खड़ा करती है
ख़मोश सी ख़ुद से ही लड़ा करती है
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