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यह अँजोरे पाख की एकादशी
 
 
यह अँजोरे पाख की एकादशी
 
दूध की धोयी, विलोयी-सी हँसी ।
गंधमाती हवा झुरुकी चैत की,
 
अलस रसभीनी युवा मद की थकी
 
लतर तरु की बाँह में,
 
चांदनी की छाँह में
 
एक छवि मन में कहीं तिरछी फँसी
 
गोल लहरें, जुन्हाई अँगिया कसी ।
 
 
 
हर बटोही को टिकोरे टोंकते,
 
और टेसू, पथ अगोरे रोकते
 
कमल खिलते ताल में,
 
बसा कोई ख्याल में
 
चंद्रमा, श्रृंगार का ज्यों आरसी,
 
रात, जैसे प्यार के त्यौहार-सी ।
 
 
 
गुनगुनाती पाँत भँवरों की चली,
 
लाज से दुहरी हुई जाती कली
 
धना बैठी सोहती,
 
बाट प्रिय की जोहती
 
द्वार पर ज्यों सगुन बन्दनवार-सी
 
रस भिंगोयी सुघर द्वारा चार-सी ।
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