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|रचनाकार=सौदा
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फ़ख़्र मलबूस पर तू अपनी न कर ऐ मुनअम
पशम दोनों हैं, तेरी शाल हमारी लोई
शैख़ काबे में ख़ुदा को तू अबस ढूँढे है
तालिब उसका है तो हर इक की करे दिलजोई
</poem>