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आज है, कल हुई / उर्मिलेश

17 bytes added, 15:09, 13 नवम्बर 2009
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|रचनाकार=उर्मिलेश
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आज है, कल हुई, हुई, न हुई
 
छांव हर पल हुई, हुई, न हुई
 
एक पहेली है ज़िंदगी अपनी
 
क्या पता हल हुई, हुई, न हुई
 
देह का फ़लसफ़ा बताता है
 
कल ये संदल हुई, हुई, न हुई
 
जो नदी तुझमें - मुझमें बह्ती है
 
उसमें कलकल हुई, हुई, न हुई
 
ये नुमाइश तो चार दिन की है
 
फिर ये हलचल हुई, हुई, न हुई
 
मानकर घास रौंद मत इसको
 
कल ये मखमल हुई, हुई, न हुई
 
जितना जी चाहे उतनी पी ले तू
 
फिर ये बोतल हुई, हुई, न हुई
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