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{{KKRachna
|रचनाकार=सौदा
}}
<poem>
'सौदा' से ये कहा मैं कुछ ज़िक्र कर किसी का
ख़ामोशी ने तो तेरी आलम को जी लिया है
बोला: बयान सुनकर किसका ख़ुशी हो तुझको
इस ग़मकदे में आकर दिल किनने ख़ुश किया है
</poem>