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बच्चों के संग सियाराम भी सोते जगते हैं
बच्चों में रहते हैं हरदम बच्चे लगते हैं
टी.वी. के चैनल से ज्यादा चैनल जीते हैं
घोड़ा बनते इंजन बनते गाल फुलाते हैं
गुब्बारे में हवा फूँकते और उड़ाते हैं
चश्मे का शीशा फूटा औ’ छतरी टूट गईभूल गये गए भगवान सुबह की पूजा छूट गयीगई</poem>