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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …
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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
}}
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<poem>
उसने मेरे हाथ में बाँधा
उजला कंगन बेले का
पहले प्यार से थमी कलाई
बाद उसके हौले-हौले पहनाया
गहना फूलों का
फिर झुककर हाथ को चूम लिया
फूल तो आखिर फूल ही थे
मुरझा ही गए
लेकिन मेरी रातें उनकी खुशबू से अब तक रोशन हैं
बाँहों पर वो लम्स अभी तक ताज़ा है
(शाख़-ए-सनोबर पर इक चाँद दमकता है )
फूल का गहना
प्रेम का कंगन
प्यार का बंधन
अब तक मेरी याद के हाथ से लिप्त हुआ है
</poem>
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|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
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<poem>
उसने मेरे हाथ में बाँधा
उजला कंगन बेले का
पहले प्यार से थमी कलाई
बाद उसके हौले-हौले पहनाया
गहना फूलों का
फिर झुककर हाथ को चूम लिया
फूल तो आखिर फूल ही थे
मुरझा ही गए
लेकिन मेरी रातें उनकी खुशबू से अब तक रोशन हैं
बाँहों पर वो लम्स अभी तक ताज़ा है
(शाख़-ए-सनोबर पर इक चाँद दमकता है )
फूल का गहना
प्रेम का कंगन
प्यार का बंधन
अब तक मेरी याद के हाथ से लिप्त हुआ है
</poem>