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Kavita Kosh से
::पाषाणों में मसले या
:::फूलों से शैशव देखूँ!
तेरे असीम आंगन की
:देखूँ जगमग दीवाली,
::या इस निर्जन कोने के
:::बुझते दीपक को देखूँ!
देखूँ विहगों का कलरव
:घुलता जल की कलकल में,
::निस्पन्द पड़ी वीणा से
:::या बिखरे मानस देखूँ!
मृदु रजतरश्मियां देखूँ
:उलझी निद्रा-पंखों में,
::या निर्निमेष पलकों में
:::चिन्ता का अभिनय देखूँ!
तुझ में अम्लान हँसी है
:इसमें अजस्र आँसू-जल,
::तेरा वैभव देखूँ या
:::जीवन का क्रन्दन देखूँ!
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