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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …
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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
}}
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<poem>
पहले ख़त रोज़ लिखा करते थे
दूसरे तीसरे तुम फ़ोन भी कर लेते थे
और अब ये कि तुम्हारी ख़बरें
सिर्फ़ अख़बार से मिल पाती हैं
</poem>
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|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
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पहले ख़त रोज़ लिखा करते थे
दूसरे तीसरे तुम फ़ोन भी कर लेते थे
और अब ये कि तुम्हारी ख़बरें
सिर्फ़ अख़बार से मिल पाती हैं
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