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|रचनाकार=रहीम
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<poem>
जिहि कारन बार न लाये कछू, गहि संभु-सरासन दोय किया।
गये गेहहिं त्यागि कै ताही समै सु निकारि पिता बनवास दिया॥
कहे बीच ’रहीम’ रर्यौ न कछू, जिन कीनो हुतो बिनुहार किया।
बिधि यों न सिया रसबार सिया करबार सिया पिय सार सिया॥
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