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शहतूत-हरे, पके / त्रिलोचन

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{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>नंगी दीवार छीजती हुई,
थोडा ही आगे,
शहतूत का पेड़
पुरखों की यही निशानी है

निशानी भी क्या
जब तक साँस मेरी है
तभी तक उनकी याद है

आप लोग शहतूत की छाँह में
जुड़ा रहे थे
फल भी पेड़ पर भरे थे
मैंने कुछ तोड़ॆ आप के लिये
अपने लिये बिलकुल नहीं

24.11.2002</poem>
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