भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन }}<poem>अपने आप उगता है बढ़ता है, मानव का हि…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>अपने आप उगता है
बढ़ता है, मानव का हितैषी है
नाना प्रकार से बबूल
बबूल किसी की शुश्रूषा का
मुहताज नहीं
उँटहार काँटे अलग कर इस की पत्तियाँ
हाँथ में ले कर ऊँट के मुँह में
डालता है जैसे माँ अपने बच्चे
के मुँह में छोटे छोटे कौर ड़ालती है
बबूल का निर्यास उस के भीतर
से
निकल कर बाहर चिपकता रहता है
आयुर्वेद की कई औषधियों में इस
का उपयोग किया जाता है।
बबूल की फलियों को सेंगरी कहते हैं
सेंगरी से कई स्वाद के अचार
बनते हैं।
25.11.2002</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>अपने आप उगता है
बढ़ता है, मानव का हितैषी है
नाना प्रकार से बबूल
बबूल किसी की शुश्रूषा का
मुहताज नहीं
उँटहार काँटे अलग कर इस की पत्तियाँ
हाँथ में ले कर ऊँट के मुँह में
डालता है जैसे माँ अपने बच्चे
के मुँह में छोटे छोटे कौर ड़ालती है
बबूल का निर्यास उस के भीतर
से
निकल कर बाहर चिपकता रहता है
आयुर्वेद की कई औषधियों में इस
का उपयोग किया जाता है।
बबूल की फलियों को सेंगरी कहते हैं
सेंगरी से कई स्वाद के अचार
बनते हैं।
25.11.2002</poem>