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04:08, 17 नवम्बर 2009
{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रमा द्विवेदी}}
क्यों ज़ुल्मों को ही झेलती रहीं हैं नारियां?<br>
क्यों नहीं आवाज उठा पाईं नारियां?<br><br>
नारी के बिना पुरुष क्या है? ईश अधूरा,<br>
फिर क्यों नहीं सम्मान से जी पाईं नारियां?<br>
क्यों ज़ुल्मों को ही झेलती रहीं हैं नारियां?<br><br>
लोगों ने उसे पूजा है देवी बनाकर,<br>
पर क्यों नहीं इंसान बन पाईं नारियां?<br>
क्यों ज़ुल्मों को ही झेलती रहीं हैं नारियां?<br><br>
सदियों से कष्ट भोगती रही हैं नारियां,<br>
फिर क्यों नहीं विद्रोह कर पाईं नारियां?<br>
क्यों ज़ुल्मों को ही झेलती रहीं हैं नारियां?<br><br>
नारी ने अपनी शक्ति से है विश्व संवारा,<br>
पर खुद के लिए कुछ न जुटा पाईं नारियां?<br>
क्यों ज़ुल्मों को ही झेलती रहीं हैं नारियां?<br><br>
नारी तुझे टकराना होगा इस समाज से,<br>
अगर स्वाभिमान से तुम्हें जीना है नारियां।<br>
क्यों ज़ुल्मों को ही झेलती रहीं हैं नारियां?<br><br>
नारी तुम अपनी शक्ति से नव-इतिहास रचाओ,<br>
कदम प्रगति की ओर बढ़ाओ हे नारियां।<br>
क्यों ज़ुल्मों को ही झेलती रहीं हैं नारियां?<br><br>
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