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भले ही मुल्क के हालात में तब्दीलियाँ कम बेशक छोटे होंलेकिन धरती का हिस्सा हम भी हैं
किसी सूरत गरीबों जैसे प्रभु की मगर अब सिसकियाँ कम हों।सारी रचना, वैसी रचना हम भी हैं।
तरक्की ठीक है इसका ये मतलब तो इतना भी आसान नहीं लेकिनहै पढ़ना और समझ पाना
धुआँ हो, चिमनियाँ हों, फूल कम हों, तितलियाँ कम हों।सुख की दुख की संघर्षों की पूरी गाथा हम भी हैं।
फिसलते ही फिसलते आ गए नाज़ुक मुहाने तक
जरूरी आज नहीं हो कल तुमको भी साथ हमारे चलना है कि अब आगे से हमसे गल्तियाँ कम हों।
एक ज़माना तुम भी थे तो एक ज़माना हम भी हैं।
यही जो बेटियाँ हैं ये ही आखिर कल की माँए हैं
मिलें मुश्किल से कल माँए न इतनी बेटियाँ कम हों।
फ़न ने ही हमको दी है मर्यादा जीने मरने की
तो फिर फन के जीने मरने की मर्यादा हम भी हैं।
दिलों को भी तो अपना काम करने का मिले मौका
दिमागों ने जो पैदा की है शायद दूरियाँ कम हों।
ईश्वर ने तो लिख रक्खा है सबके माथे पर लेकिन
अपने सुख के अपने दुख के एक विधाता हम भी हैं।
अगर सचमुच तू दाता है कभी ऐसा भी कर ईश्वर
तेरी खैरात ज्यादा हो हमारी झोलियाँ कम हों।जब जब भी इच्छा होती है रास रचा लेते हैं हम अपने मन के वृंदावन के छोटे कान्हा हम भी हैं।