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अर्जुन हूँ दिव्य अलौकिक शंख को,
वेगि सों वेगि बजाय रहे
<span class="upnishad_mantra">पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः।पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः॥१-१५॥</span>
शंख पाञ्चजन्य श्री माधव ने,
देवदत्त बजायो धनञ्जय ने .
पौण्ड्र शंख तो भीमा ने ,
अथ दृश्य सुनायौ संजय ने
<span class="upnishad_mantra">अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ॥१-१६॥</span>
अनंत विजय के नाम को शंख ,
तो कुंती के पुत्र युधिष्ठिर ने.
सहदेव नकुल मणिपुष्पक शंख,
सुघोष बजयौ महीधर ने
<span class="upnishad_mantra">काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः॥१-१७॥</span>
अपराजित सात्यकि, नृप विराट,
शिखंडी महारथी वीर मही .
इन वीरहूँ शंख निनाद कियौ,
बहु शंख बजाय रह्यौ सबहीं
<span class="upnishad_mantra">द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक्पृथक्॥१-१८॥</span>
सुत पाँचों द्रुपद नृप, द्रौपदी कौ,
महाबाहु अभिमन्यु उत है,
सुनि राजन ! आपुनि - आपुनि ही,
निज शंख को आपु बजाउत हैं
<span class="upnishad_mantra">स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्।नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्॥१-१९॥</span>
घन घोष तुमुल नभ धरनी कौ,
निज नाद सों ऐसौ गुंजाय रहे.
धृतराष्ट्र के पुत्रं कौ हिरदय ,
व्याकुल हुई के घबराय रहे
<span class="upnishad_mantra">अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः।प्रवृत्ते शस्त्रसंपाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः॥१-२०॥</span>
कपि ध्वज अर्जुन ठाड़े हुइ के,
धृतराष्ट्र सुतन को देखत हैं.
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