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दस मिनट / जया जादवानी

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{{KKRachna
|रचनाकार= जया जादवानी
|संग्रह=उठाता है कोई एक मुट्ठी ऐश्वर्य / जया जादवानी
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<poem>
अभी घर से निकलूँगी तो
दस मिनट बाद हूँगी
टेलिफ़ोन बूथ में
दस मिनट बाद सुनूँगी
कायनात के उस ओर से आती आवाज़
रुकी रहेगी साँस दस मिनट
रुकी रहेगी रफ़्तार दुनिया की
भीड़ में से गुज़रूँगी कि भीड़
दिखाई नहीं देगी, न सुनाई देगा शोर
दस मिनट सूर्य
ख़ुद को छुपा लेगा
बादलों के पीछे
दस मिनट रुकी रहेगी हवा
खाली हो जाएँगे फेफड़े
पृथ्वी भूल जाएगी परिक्रमा अपनी
चिड़िया अपनी उड़ान में ठहरकर
देखेगी मुझे सहमी हुई
जन्म लेतीं कोंपलें
ठहर जाएँगी जन्म के मध्य
लहर लहर के मध्य
ठिठक जाएगी ख़ामोश
समुद्र गरजना भूल जाएगा
नौकाएँ भूल जाएँगी बहना
दस मिनट बाद ख़ामोश हो जाएँगी सारी तारें
सिर्फ़ एक तार बोलेगी
सूर्य को परे ठेलते होगी बारिश
दस मिनट बाद
गीली सड़कों पर दुगुनी तेज़ी से
फिसलेगा कालचक्र
खाली जगह को भरने के लिए।
</poem>