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{{KKRachna
|रचनाकार= जया जादवानी
|संग्रह=उठाता है कोई एक मुट्ठी ऐश्वर्य / जया जादवानी
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<poem>
नींद में होंगे तब हम
बहुत धीरे-धीरे गाएँगे
चुपके से सपनों में
जाने बग़ैर तुम्हारे
सुबह उठकर गाया अगर वही गाना
उड़ जाएँगे किसी और डाल पर
देंगे सूने दरवाज़ों पर दस्तक
बजाएँगे कुंडी मानो हवा में बजी हो
भेदती तमाम सन्नाटों को
छुएगी एकदम उसी जगह हमारी आवाज़
खिल उठेंगे प्रतीक्षा में मुरझाए चेहरे
चल देंगे किसी और ठौर पर
आएँगे जैसे आती है नदी से गुज़रती हवा
सहलाएँगे थके पैरों के चमकहीन बालों को
बैठेंगे भूख की बगल में उम्मीद की तरह
आग की तरह ठंड की बगल में
सदियों रहेंगे बन्द तहखानों में
प्रकट होंगे एक दिन पुरानी चमक लिए
छोड़ कर आएँगे घर तक राह भूले पथिक को
पड़े रहेंगे भीतर कच्चे हैं जब तक
पककर फूटेंगे
गदराएँगे तुम्हारे चेहरे पर
नया स्वाद देंगे
गिरेंगे बीज बनकर तुम्हारे ही भीतर
गाएँगे आइसे गाने लगोगे ख़ुद को
हम गाने वाली चिड़ियाँ हैं।
</poem>