भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=ऋतु पल्लवी
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
आज मैंने आप अपना आईने में रख दिया है
और आईने की सतह को
पुरज़ोर स्वयं से ढक दिया है।
कुछ पुराने हर्फ-- दो-चार पन्ने
जिन्हें मैंने रात की कालिख बुझाकर
कभी लिखा था नयी आतिश जलाकर
आज उनकी आतिशी से रात को रौशन किया है।
आलों और दराजों से सब फाँसे खींची
यादों के तहखाने की साँसें भींची
दरवाज़े से दस्तक पोंछी
दीवारों के सायों को भी साफ़ किया है।
</poem>