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खिला गुलमुहर / ऋषभ देव शर्मा

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खिला गुलमुहर जब कभी द्वार मेरे,
याद तेरी अचानक मुझे आ गई .
चीर कर दुपहरी छांह ऐसे घिरी,
चूनरी ज्यों तुम्हारी लहर छा गई..
 
 
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