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<Poem>
खिला गुलमुहर जब कभी द्वार मेरे,
याद तेरी अचानक मुझे आ गई .
चीर कर दुपहरी छांह ऐसे घिरी,
चूनरी ज्यों तुम्हारी लहर छा गई..
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