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पयंबरे-मश्रिक / फ़राज़

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कटी तो साज़े-तमन्ना <ref>मनो कामना का वाद्य-यंत्र</ref> लहू-लहू भी हुआ
यही बहुत था कोई मंज़िले-तलब <ref>वाँछित वांछित मंज़िल</ref> तो मिलीकही कहीं तो मुज़्दा-ए-क़ुर्बे-हरीमे-यार <ref>प्रेयसी के निवास के सामीप्य का शुभ संदेश</ref>मिला
हज़ार शुक्र कि तअने-बरहनगी <ref>नग्न होने का उलाहना</ref> तो गया
अगर्चे-पैरहने-शौक़ <ref>चाहत का वस्त्र</ref> तार-तार मिला
दराज़ <ref>लंबा</ref> दस्ती-ए-जाहो-हशम <ref>नौकरशाही के हाथों </ref> को आम <ref>सर्व-व्यापक</ref> किया
मुफ़क़्क़िरों <ref>चिंतकों</ref> ने फ़क़ीहों <ref>धार्मिक विद्वानों,मुल्ला-मौलवियों</ref> की दिल-दिही के लिए
ख़ुदी <ref>स्वयं से परिचय</ref> की मय <ref>मद्य</ref> में तसव्वुफ़ <ref>सूफ़ीज़्म,अध्यातमवादअध्यात्मवाद</ref> का ज़ह्र <ref>विष</ref> घोल दिया
वो कम-नज़र <ref>संकीर्ण दृष्टि वाले</ref> थे कि नादान <ref>अनभिज्ञ</ref> थे कि शोब्दागर<ref>धुले-हुए</ref>
जो तुझको जिन्नो-मलाइक <ref>जिन्न और फ़रिश्ते</ref> का तर्जुमाँ <ref>दुभाषिया,भाषांतरकार</ref>समझे
तिरी नज़र में हमेशा ज़मीं <ref>धरती</ref>के ज़ख्म <ref>घाव</ref> रहे
उरूज़े-अज़्मते-आदम <ref>मानव की महानता का उत्कर्ष</ref> था मुद्दआ <ref>उद्देश्य</ref> तेरा
मगर ये लोग नक़ूशे-फ़ना <ref>मृत्यु-चिह्न</ref> उभारते हैं
किस आस्माँ पे है तू ऐ पयम्बरे-मश्रिक <ref>पूर्व के दूत</ref>
ज़मीं के ज़ख़्म तुझे आज भी पुकारते हैं
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