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Kavita Kosh से
'''ख़ुदग़रज़<ref>स्वार्थी</ref>'''
ऐ दिल! अपने दर्द के कारन तू क्या-क्या बेताब<ref>व्याकुल</ref>रहा
दिन के हंगामों<ref>कोलाहल</ref>में डूबा रातों को बेख़्वाब<ref>जागता हुआ</ref> रहा
लेकिन तेरे ज़ख़्म का मरहम तेरे लिए नायाब <ref> दुर्लभ,अप्राप्य</ref> रहा
फिर इक अनजानी सूरत ने तेरे दुख के गीत सुने