भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
आज हालात का ये तंज़े-जिगरसोज़ <ref> सीने को छलनी कर देने वाला उलाहना</ref>तो देख
तू मिरे शह्र के इक हुजल-ए-ज़रींज़र्रीं<ref>सोने (स्वर्ण) की सेज</ref> में मकीं<ref>निवासी</ref>और मैं परदेस में जाँदाद-ए-यक -नाने- जवीं<ref>जौ की एक रोटी को तरसता</ref>
</poem>
{{KKMeaning}}