भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह= }}<poem>भरी बहार सुबह धूप धूप के सीने…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}<poem>भरी बहार सुबह धूप
धूप के सीने में छिपे ओ तारों नक्षत्रों
फागुन रस में डूबे हम
बँधे रंग तरंग
काँपते हमारे अंग।
छिपे छिपे हमें देखो
सृष्टि के ओ जीव निर्जीवों
भरपूर आज हमारा उल्लास
खिलखिलाती हमारी कामिनियाँ
कार्तिक गले मिल रहे
दिलों में पक्षी गाते सा रा सा रा रा।
रंग बिरंगे पंख पसारे
उड़ उड़ हम गोप गोपियाँ
ढूँढते किस किसन को
वह पागल
हर सूरदास रसखान से छिपा
भटका राधा की बौछार में
होली है, सा रा सा रा रा, होली है।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}<poem>भरी बहार सुबह धूप
धूप के सीने में छिपे ओ तारों नक्षत्रों
फागुन रस में डूबे हम
बँधे रंग तरंग
काँपते हमारे अंग।
छिपे छिपे हमें देखो
सृष्टि के ओ जीव निर्जीवों
भरपूर आज हमारा उल्लास
खिलखिलाती हमारी कामिनियाँ
कार्तिक गले मिल रहे
दिलों में पक्षी गाते सा रा सा रा रा।
रंग बिरंगे पंख पसारे
उड़ उड़ हम गोप गोपियाँ
ढूँढते किस किसन को
वह पागल
हर सूरदास रसखान से छिपा
भटका राधा की बौछार में
होली है, सा रा सा रा रा, होली है।
</poem>