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पिता-1 / चंद्र रेखा ढडवाल

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'''पिता (एक)''' 
पिता! मेरे कंधों पर
सुर्ख़ाब के पर रख दो
मैं छू लेना चाहता हूँ
पहाड़ों की नर्म धूप
 
मेरे पैरों में किश्तियाँ बाँध दो
मैं पा लेना चाहता हूँ
सात समंदर पार के
नीलम देश की राजकन्ताराजकन्या 
मेरी हथेलियों पर बो दो सरसों के बीज
जो रातों-रात भरी-भरी फलियों से लदी
पौध हो जाएँ.
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