भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्या गाऊँ / नरेन्द्र शर्मा

15 bytes removed, 10:04, 7 दिसम्बर 2009
{{KKCatGeet}}
<poem>
::गाऊँ भी तो क्या गाऊँ?
मैं रो गा कर अब कब तक मन बहलाऊँ?
::यह लाइलाज रोगी मन है,::यह क्षुद्र पात्र-सा जीवन है,
क्या मैं, मानव मैं इनमें सिमट समाऊँ?
::इस क्षीण रुधिर की धारा का,::क्या बह सकना ही ध्येय बने,::धाराओं का गंगासागर—संगम-::समाज या—गेय बने?
बन क्षुद्र रहूँ या मैं विशाल बन जाऊँ?
::बुन बुन उघेड़ता रहूँ सदा::इस धूप-छाँह की जाली को?::क्या ओठों पर लाऊँ हरदम::सब सब की जूठी प्याली को?
जाग्रत जीवित हो जिऊँ या कि मर जाऊँ?
::है एक ओर इच्छाओं का::वासनाजनित छायान्धकार,::औ दूर दूसरी ओर दीखता::संयम का अवरुद्ध द्वार!
मैं श्रेय प्रेय में से किसको अपनाऊँ?
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits