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Kavita Kosh से
इस भाँति न जाने किस पथ से
:वे मुझमें आज समाये!!
:इस जीवन में वे आये।मेरी निद्रा का अन्धकारनव स्वर्ण स्वप्न का बना दास,कुशला कोकिल का कण्ठ किसीकूजन से करता है विलास,मेरी तन्त्री के तार तारले रहे रागिनी-रूप स्वास,मेरी छवि-कलिका में प्रशान्तछिपकर सोता है नव-विकास,सुमनों की उँगली से वसन्त नेजैसे वृक्ष जगाये॥:इस जीवन में वे आये।
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