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Kavita Kosh से
छेड़ोगे, तो पत्ती-पत्ती चरणों पर बिखरा दूँगा;
संचित जीवन साध कलंकित न हो, कि उसे लुटा दूँगा;
::किन्तु मसल कर सखे! क्रूरता--
::की कटुता तू मत जतला;