भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
इक दिन ऐसा भी आएगा होंठ-होंठ पैमाने होंगे मंदिर-मस्जिद कुछ नहीं होंगे घर-घर में मयख़ाने होंगे
जीवन के इतिहास में ऐसी एक किताब लिखी जाएगी
जिसमें हक़ीक़त औरत होगी मर्द सभी अफ़्साने होंगे
 
राजनीति व्यवसाय बनेगी संविधान एक नाविल होगा
चोर उचक्के सब कुर्सी पर बैठ के मूँछें ताने होंगे
 
एक ही मुंसिफ़ इंटरनैट पर दुनिया भर का न्याय करेगा
बहस मोबाइल ख़ुद कर लेगा अधिवक्ता बेग़ाने होंगे
 
ऐसी दवाएँ चल जाएँगी भूख प्यास सब ग़ायब होगी
नये-नवेले बूढे़ होंगे,बच्चे सभी पुराने होंगे
 
लोकतंन्त्र क तंत्र न पूछो प्रतियाशी कम्प्यूटर होंगे
और हुकूमत की कुर्सी पर क़ाबिज़ चंद घराने होंगे
 
गाँव-खेत में शहर दुकाँ में सभी मशीनें नौकर होंगी
बिन मुर्ग़ी के अन्डे होंगे बिन फ़सलों के दाने होंगे
छोटॆ-छोटॆ से कमरों में मानव सभी सिमट जाएँगे
दीवारें ख़ुद फ़िल्में होंगी,दरवाज़े ख़ुद गाने होंगे
बेकल इसको लिख लो तुम भी महिला-पुरुष में फ़र्क न होगा
रिश्ता-विश्ता कुछ नहीं होगा संबंधी अंजाने होंगे
 
**********