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देवदार / त्रिलोचन

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{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>पहुँच गया देवदार
गिरिश्रंग की ऊँचाई तक
पवन नें उसे छू कर
जैसे कहा, उपजे हो तुम
इसी धरणी की कोख से
जननी के जीवन को
तुम ने नया अर्थ दिया
धन्य किया।

भूतल के योगक्षेम, देवदार,
कहना तुम सूरज से, चाँद से, तारों से
ये सब तुम्हारे हैं, सर्वदा तुम्हारे हैं,
तुम्हें मानते हैं।

सभी प्राणियों को प्राणवंत करो
दुख उन के दूर करो।

4.12.2002</poem>
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