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रचना क्या है?.. / हिमांशु पाण्डेय

1,005 bytes added, 07:24, 14 दिसम्बर 2009
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मुझसे मेरे अन्तःकरण का स्वत्व"रचना क्या है, इसे समझने बैठ गया मतवाला मनगिरवी न रखा जा सकेगाभले ही मेरे स्वप्नकैसे रच देता है कोई,मेरी आकांक्षायेंसौंप दी जाँय किसी बधिक के हाँथोंरचना का उर्जस्वित तन ।
कम लगा सोचने क्या यह रचना, किसी हृदय की वाणी है,अथवा प्रेम-तत्व से कम कानिकली जन-पुरुष तो न कहा जाउंगाऔर न ऐसा दीप हीजिसका अन्तर ही ज्योतिर्मय नहींजन की कल्याणी है,फिर भले हीखुशियाँ अनन्त काल क्या रचना आक्रोश मात्र के लियेसुला दी जायेंगी किसी काल कोठरी में,या कि चेतना अतल रोष का अजस्र संगीतमूक हो जायेगा निरन्तर,प्रतिफल हैया फिर किसी हारते मन की दृढ़ आशा का मुकुर चूर-चूर हो जायेगाक्षण-क्षण प्रहारों सेसम्बल है ।
’किसी हृदय की वाणी है’रचना, तो उसका स्वागत है’जन-जन की कल्याणी है’ रचना, तो उसका स्वागत हैरचना को मैं समर्पित साधना रोष शब्द का विषय बनाना नहीं चाहता’दृढ़ आशा का सम्बल है’ रचना तो उसका स्वागत है । ’झुकी पेशियाँ, डूबा चेहरा’ ये रचना का विषय नहीं है’मानवता पर छाया कुहरा’ ये रचना का विषय नहीं हैविषय बनाना हो तो लाओ हृदय सूर्य की राह लूँगाभाव रश्मियाँनियम-संयम से चलूँगा’दिन पर अंधेरे का पहरा’ ये रचना का विषय नहीं है । रचना की एक देंह रचो जब कर दो अपना भाव समर्पणउसके हेतु समर्पित कर दो, ज्ञान और अनुभव का कण-कणयदि चल सकूँगा तब जो रचना देंह बनेगी, वह पवित्र सुन्दर होगीपावनता बरसायेगी रचना प्रतिपल क्षण-क्षण, प्रतिक्षण
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