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’किसी हृदय की वाणी है’रचना, तो उसका स्वागत है’जन-जन की कल्याणी है’ रचना, तो उसका स्वागत हैरचना को मैं समर्पित साधना रोष शब्द का विषय बनाना नहीं चाहता’दृढ़ आशा का सम्बल है’ रचना तो उसका स्वागत है । ’झुकी पेशियाँ, डूबा चेहरा’ ये रचना का विषय नहीं है’मानवता पर छाया कुहरा’ ये रचना का विषय नहीं हैविषय बनाना हो तो लाओ हृदय सूर्य की राह लूँगाभाव रश्मियाँनियम-संयम से चलूँगा’दिन पर अंधेरे का पहरा’ ये रचना का विषय नहीं है । रचना की एक देंह रचो जब कर दो अपना भाव समर्पणउसके हेतु समर्पित कर दो, ज्ञान और अनुभव का कण-कणयदि चल सकूँगा तब जो रचना देंह बनेगी, वह पवित्र सुन्दर होगीपावनता बरसायेगी रचना प्रतिपल क्षण-क्षण, प्रतिक्षण ।
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