भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
:कुछ आये बवन्डर
:थरथराए कुछ बदन
:कुछ गिर गये घर,
:कुछ अँधेरा बढ़ा
:दृग छाई अँधेरी
:कुछ कलेजा कँपा
:पथ में लगी देरी,
किन्तु सहसा टूट कर , पानी हुआ अभिमान उनका,
और मस्ती से हरा ऊगा धरा पर आज तिनका।
मैं बड़ों का पतन चित्रित कर उठा,