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{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>नेह नवोढा नारि को बारि बालुका न्याय,
थतराए पै पाईए नीपीड़े न रसाय।
- मतिराम
नववधु का नेह पानी-बालू की नाई है
दोनों को थतराने दीजिए, थिराने दीजिए, तभी
रस आएगा, निष्पीड़न में रस नहीं मिलेगा।
15.10.2002</poem>