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Kavita Kosh से
::जो तुझको पा सका--
::गरीबों के जी में ही पाया।
है तेरा विश्वास गरीबों का धन, अमर कहानी--
तो है तेरा श्वास, क्रान्ति की प्रलय लहर मस्तानी।
कंठ भले हों कोटि-कोटि, तेरा स्वर उनमें गूँजा
हथकड़ियों को पहन राष्ट्र ने पढ़ी क्रान्ति की पूजा।
::बहिनों के हाथों जगमग है
::प्रलय-दीप की थाली;
::और हमारे हाथों है--
::माँ के गौरव की लाली।
'''रचनाकाल: प्रताप प्रेसश्री बेनीपुरी को, कानपुरगाँधी-१९४४जयंती के लिए, पटना-१९३५
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