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हृदय / माखनलाल चतुर्वेदी

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कौन है? है देश का जीवन यही,--
::और है वह जो कहाता है ’हृदय’।
:सृष्टि पर अति कष्ट जब होते रहे,
:विश्व में फैली भयानक भ्रान्तियाँ
:दण्ड, अत्याचार, बढ़ते ही गये,
:कट गये लाखों मिटी विश्रान्तियाँ,
गद्दियाँ टूटीं असुर मारे गये
::किस तरह? होकर करोड़ों क्रान्तियाँ,
तब कहीं है पा सकी मातामही
::मृदुल-जीवन में मनोहर शान्तियाँ।
:बज उठीं संसार भर की तालियाँ
:गालियाँ पलटीं, हुई ध्वनि, जयति जय,
:पर हुआ यह कब? जहाँ दीखा कभी
:विश्व का प्यारा कहीं कोई ’हृदय’।
 
'''रचनाकाल: प्रताप साप्ताहिक(विजयदशमी विशेषांक), कानपुर-१९१४
'''रचनाकाल: प्रताप प्रेस, कानपुर-१९४४
</poem>
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