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{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रमा द्विवेदी}}

ढ़लती शाम,मचलता चाँद,<br>
छलकता जम, तीनों ही तेरे नाम।<br><br>
धीरे-धीरे चाँदनी का उतरना,<br>
रात का बहकना,दिल का न संभलना,<br>
हर सांस लाती है तेरा पैगाम<br>
तीनों ही तेरे नाम........<br><br>
हर शाम मैं महफ़िल सजाता हूँ,<br>
मधुशाला से मधु चुन-चुन मंगाता हूँ,<br>
हर जाम छलकता है तेरे नाम ।<br>
तीनों ही तेरे नाम........<br><br>
जाम ही जाम पीता हूं,गम में भी जीता हूँ,<br>
ये मुकद्दर सब कुछ दिया तूने मुझे,<br>
न कर सका इक हमसफ़र का इन्तज़ाम।<br>
तीनों ही तेरे नाम.........<br><br>
अब तो मेरा जीवन ही मयखाना हो गया है,<br>
इस मयखाने का साकी कहीं खो गया है,<br>
जीने की चाह जगाता है तेरा नाम।<br>
तीनों ही तेरे नाम...........<br><br>
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