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::प्रिय अब्दुल करीम जाओ,
::अपनी बीती हुई खुदा तक,
::अपने बन कर पहुँचाओ।
'''रचनाकाल: सिमरिया वाली रानी की कोठी, कर्मवीर प्रेस, जबलपुर-१९२०
</poem>
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