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अक्षम क्षमताशील बनें
:जावें दुबिधा, भ्रम!
::निर्भय जग-जीवन कानन में
:::कर हे विचरण,
::काँप मरें गत खर्व मनुजता के
:::मर्कट गण!
प्रखर नभर नव जीवन की
:लालसा गड़ा कर
छिन्न-भिन्न करदे गतयुग के
:शव को, दुर्धर!
::गर्जन कर, मानव-केशरि!
:::प्राण-प्रद गर्जन,--
::जागें नवयुग के खग,
:::बरसा जीवन-कूजन!
 '''रचनाकाल: मई’१९३५अक्टूबर’१९३५'''
</poem>
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