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14:02, 20 दिसम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ मैं / शलभ श्रीराम सिंह
}}
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<poem>
फिर-फिर किया गया प्यार
फिर-फिर दण्डित होने के बावजूद
चिड़िया का बच्चा बना रहा
शरारत-पसंद लोगों के हाथ में
उम्र भर।
फिर-फिर दण्डित होने के लिए
फिर-फिर करता रहा प्यार
जीता रहा इस उम्मीद में
कि थकान शायद
शरारत की शक्ल को बदले
या फिर अक्ल ही बदल जाए मेरी
उम्र के साथ।
नहीं हुआ ऐसा कुछ भी अब तक
फिर-फिर किया गया, किया गया प्यार
फिर-फिर दण्डित होने के लिए।
रचनाकाल : 1991, विदिशा
</poem>