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लेकर आया, प्रेमी वसन्त,--
आकुल जड़-चेतन स्नेह-प्राण!
::काली कोकिल!--सुलगा उर में::स्वरमयी वेदना का अँगार,::आया वसन्त, घोषित दिगन्त::करती भव पावक की पुकार!आः, प्रिये! निखिल ये रूप-रंगरिल-मिल अन्तर में स्वर अनन्तरचते सजीव जो प्रणय-मूर्तिउसकी छाया, आया वसन्त! 
'''रचनाकाल: अप्रैल’१९३५'''
</poem>
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