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{{KKRachna
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
|संग्रह=पल्लव / सुमित्रानंदन पंत
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::(१)आज कहां वह पूर्ण -पुरातन, वह सुवर्ण का काल?::भूतियों का दिगंत -छबि -जाल,::ज्योति -चुम्बित जगती का भाल?राशि-राशि विकसित वसुधा का यह वह यौवन -विस्तार?::स्वर्ग की सुषमा जब साभार::धरा पर करती थी अभिसार!
::प्रसूनों के शाश्वत -शृंगार,::(स्वर्ण -भृंगों के गंध -विहार)::गूंज उठते थे बारंबार,:::सृष्टि के प्रथमोद्गार!::नग्न -सुंदरता थी सुकुमार,:::ॠध्दि औ औ’ सिध्दि अपार!
::(२)
अये, विश्व का स्वर्ण स्वप्न, संसृति का प्रथम प्रभात,
कहां वह सत्य, वेद विख्यात?
निखिल उत्थान, पतन!
अहे वासुकि सहस्र फन!
'''रचनाकाल: जनवरी १९१८'''
</poem>