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== '''गोत्र शलभ'''==<br>
"शलभ से हिन्दी कविता का एक नया गोत्र प्रारंभ होता है|<br>
-- '''नागार्जुन'''<br>
समग्र मूल्यांकन अभी होना है | यह मूल्यांकन न हो पाना किसी सुनियोजित साहितिक षड्यंत्र का हिस्सा नहीं है, किसी जानी-मानी फ्रेम में "फिट" न कर पाने की हमारे आलोचकों की मजबूरी का परिणाम है जो रचनाकार को किसी फ्रेम में "फिट" किये बिना उसका मूल्यांकन करने की कला से अनभिज्ञ होते जा रहे हैं | फिर शलभ उनको चारा भी नहीं डालते | अपनी शर्तों पर जीने , लिखने और माने जाने की उनकी जिद ग़ालिब की इन पंक्तियों की याद दिलाती है-<br>
'''बंदगी में भी अजब आज़ादह-व-खुदबीं हैं कि हम'''<br> '''उलटे फिर आये, दरे-काबा अगर वा न हुआ |'''<br>
परन्तु क्या मूल्यांकन होने न होने से शलभ की काव्य-यात्रा रुक सकती है ? वह जारी है, प्रति दिन नई प्राणवायु से ऊर्जावान, नये क्षितिज, नये आयामों की तलाश करती, आदमी के भीतर और बाहर की, बिना लाग-लपेट के, परन्तु अनुराग के साथ जाँच-पड़ताल करती, उसकी चेतना को अपने शब्द-छंद-बिम्ब और लय देकर अपने आपसे साक्षात्कार के लिए उत्प्रेरित करती हुई | वह सृष्टि-रचना की उस अदम्य लालसा से प्रेरित है जो निंदा -प्रशंसा, देखी-अनदेखी सुनी-अनसुनी से निरपेक्ष है | वह शिव-तांडव की तरह अपनी अभिव्यक्ति मात्र में सम्पूर्ण है | उसके सामने मूल्यांकन होना, न होना, बहुत छोटी सी बात है | मूल्यांकन न उसमें कुछ जोड़ सकता है न उसमें से कुछ घटा सकता है | वह हमारे साहित्य संसार की जरूरत है , न कि शलभ की |<br>
'''हरिवंश सिलाकारी'''<br>