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मेरे वसन्त की प्रथम गीति --<br>
श्रृंगार, रहा जो निराकार,<br>
रस कविता में उच्छ्वसित-धार<br>
गाया स्वर्गीया-प्रिया-संग --<br>
भरता प्राणों में राग-रंग,<br>