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इस वृत्तांत में / मोहन राणा

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|संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदी / मोहन राणा
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गिर पड़ो अगर तुम
 
उठाऊंगा और साफ भी करूंगा कीचड़ को,
 
रास्ता भूल जाओ तो
 
बताऊंगा रास्ता और दूंगा पता भी
 
अगर तुम्हें मेरी तलाश हो !
 
इस जान-पहचान के बाद,
 
नहीं छोड़ूंगा मैं तुम्हें अकेला
 
बेचैनी के अंतराल में
 
और दूंगा एक खिड़की भी,
 
एक साथ हम देखेंगे जंगल को वहाँ से
 
कि आज आकाश तुम्हारे कमरे में
 
उड़ आए एक चिड़िया
 
वहाँ बादल को देख,
 
पर यह पढ़ने का कोई मतलब नहीं
 
अगर हम साथ-साथ न चले
 
कहीं दूर तक
 
इस वृत्तांत में
   '''रचनाकाल: 27.5.2002</poem>
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