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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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तुम बोना काँटे
 
क्योंकि फूल न पास तुम्हारे।
 
बो सकते हो
 
वही सिर्फ़ जो
 
उगता दिल में,
 
चरण पादुका
 
ही बन सकते
 
तुम महफ़िल में।
 
न देव शीश पर चढ़ते काँटे
 
साँझ सकारे ।
 
हँसी किसी की
 
अरे पल भर भी
 
सह न पाते,
 
और बिलखता देख किसी को
 
तुम मुस्काते ।
 
जो डूबते
 
उनको देखा
 
बैठ किनारे।
 
जीवन देकर भी है हमने
 
जीवन पाया,
 
अपने दम से
 
रोता मुखड़ा
 
भी मुस्काया।
 
सौ­-सौ उपवन
 
खिले हैं मन में
 
तभी हमारे ।
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