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मैं वहम हूँ या हक़ीक़त ये हाल देखने कोपानी मकाँ अगले क़दमों मेंगिरफ़्त होता हूँ अपना विसाल देखने कोइक इक जहाँ अगले क़दमों में
चराग़ करता हूँ अपना हर इक अज़ू-ए-बदनसूरत अगर है यही दिल कीत्तरस गया हूँ ग़मे-लाइम्काने-ज़वाल देखने कोजाँ अगले क़दमों में
मैं आदमी हूँ कि पत्थर जवाब देते नहींहै पिछले क़दमों में यह दुनियाचले हैं चले हैं कोहे-नदा से सवाल देखने कोमेरा जहाँ अगले क़दमों में
न शऊर हैं न सताइश अजब ज़माना हैलिख दें हवाओं के चेहरे परकहीं पे मिलता नहीं अब कमाल देखने कोअगला निशान अगले क़दमों में
मैं ‘तूर‘ आख़िरी साअत का एक मंज़र हूँसूरत यही हो सफ़र की ‘तूर’वो आ रहा है मुझे बे मिसाल देखने को{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कृश्न कुमार 'तूर'|संग्रह=आलम ऐन / कृश्न कुमार 'तूर'}}{{KKCatGhazal}}<poem>हर आसमाँ अगले क़दमों में
मैं वहम हूँ या हक़ीक़त ये हाल देखने को
गिरफ़्त होता हूँ अपना विसाल देखने को
 
चराग़ करता हूँ अपना हर इक अज़ू-ए-बदन
त्तरस गया हूँ ग़मे-ला-ज़वाल देखने को
 
मैं आदमी हूँ कि पत्थर जवाब देते नहीं
चले हैं चले हैं कोहे-नदा से सवाल देखने को
 
न शऊर हैं न सताइश अजब ज़माना है
कहीं पे मिलता नहीं अब कमाल देखने को
 
मैं ‘तूर‘ आख़िरी साअत का एक मंज़र हूँ
वो आ रहा है मुझे बे मिसाल देखने को
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