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गंध बर मौन रहा आह! एक मेरा सुमन ।
 
 
[[ रक्तमुख / जानकीवल्लव शास्त्री ]]
 
कुपथ कुपथ रथ दौड़ाता जो
 
पथ निर्देशक वह है,
 
लाज लजाती जिसकी कृति से
 
धृति उपदेश वह है,
 
मूर्त दंभ गढ़ने उठता है
 
शील विनय परिभाषा,
 
मृत्यू रक्त से देता
 
जन को जीवन की आशा,
 
जनता धरती पर बैठी है
 
नभ में मंच खड़ा है,
 
जो जितना है दूर मही से
 
उतना वही बड़ा है.
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