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|संग्रह=उस जनपद का कवि हूँ / त्रिलोचन
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{{KKCatKavita}}<poem>उस जनपद का कवि हूँ जो भूखा दूखा है,<br>नंगा है, अनजान है, कला--नहीं जानता<br>कैसी होती है क्या है, वह नहीं मानता<br>कविता कुछ भी दे सकती है। कब सूखा है<br>उसके जीवन का सोता, इतिहास ही बता <br> सकता है। वह उदासीन बिलकुल अपने से,<br>अपने समाज से है; दुनिया को सपने से<br>अलग नहीं मानता, उसे कुछ भी नहीं पता<br>दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँची; अब समाज में<br>वे विचार रह गये नही हैं जिन को ढोता<br>चला जा रहा है वह, अपने आँसू बोता<br>विफल मनोरथ होने पर अथवा अकाज में।<br>धरम कमाता है वह तुलसीकृत रामायण<br>सुन पढ़ कर, जपता है नारायण नारायण।<br/poem>
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